
फैटी लिवर का निदान कैसे होता है? जानें जांच की प्रक्रिया
फैटी लिवर क्या है?
फैटी लिवर (Fatty Liver) एक ऐसी स्थिति है जिसमें लिवर की कोशिकाओं में अत्यधिक वसा जमा हो जाती है। यह स्थिति प्रारंभिक चरण में अक्सर बिना किसी स्पष्ट लक्षण के होती है, इसलिए इसका सटीक और समय पर निदान (Diagnosis) बेहद जरूरी है। उचित जांच से यह पता लगाया जाता है कि यह बीमारी किस स्तर पर है और इसका इलाज कैसे किया जाना चाहिए।
फैटी लिवर का निदान क्यों जरूरी है?
- लक्षण देर से सामने आते हैं
- लिवर सिरोसिस या लीवर फेल्योर का खतरा
- शुरुआती अवस्था में इलाज आसान होता है
- जीवनशैली में सुधार की दिशा तय होती है
फैटी लिवर रोग का निदान कैसे किया जाता है?
1. ब्लड टेस्ट (Liver Function Test - LFT):
- लिवर एंजाइम (ALT, AST) की मात्रा को मापा जाता है
- फैटी लिवर में ये एंजाइम बढ़े हुए मिल सकते हैं
- ये टेस्ट संकेत देते हैं कि लिवर को नुकसान हो रहा है या नहीं
2. इमेजिंग टेस्ट्स (Imaging Tests):
✅ अल्ट्रासाउंड (Ultrasound):
- सबसे सामान्य और शुरुआती जांच
- लिवर में फैट जमा होने की पहचान की जाती है
✅ CT Scan या MRI:
- अधिक डिटेल और सटीक जानकारी के लिए
- गंभीर मामलों में उपयोग किया जाता है
✅ FibroScan (Transient Elastography):
- लिवर की कठोरता को मापता है
- यह बताता है कि लिवर में फाइब्रोसिस या सिरोसिस है या नहीं
3. लिवर बायोप्सी (Liver Biopsy):
- सबसे सटीक निदान विधि
- सुई की मदद से लिवर की एक छोटी मात्रा निकाली जाती है
- सूक्ष्मदर्शी से जांच कर यह जाना जाता है कि लिवर में सूजन या क्षति कितनी है
- ध्यान दें: बायोप्सी की आवश्यकता केवल तब होती है जब अन्य जांच पर्याप्त स्पष्टता न दें।
निदान के बाद क्या करें?
- डॉक्टर के अनुसार जीवनशैली में बदलाव करें
- नियमित व्यायाम और संतुलित आहार अपनाएं
- शराब और फास्ट फूड से परहेज़ करें
- आवश्यक दवाओं का सेवन शुरू करें
- लिवर की नियमित जांच करवाएं
H2: निष्कर्ष
फैटी लिवर रोग का समय पर और सटीक निदान व्यक्ति को लिवर से जुड़ी गंभीर बीमारियों से बचा सकता है। ब्लड टेस्ट, अल्ट्रासाउंड और बायोप्सी जैसी जांच विधियों से इस रोग की पहचान की जा सकती है। डॉक्टर की सलाह से उचित इलाज शुरू करना ही सबसे प्रभावी कदम है।